• फोटोन की अवधारणा :-
प्लांक ने कृष्णिका द्वारा उत्सर्जित विकिरणों के स्पेक्ट्रम को समझने के लिए ऊर्जा के क्वाण्टीकरण की अवधारणा प्रतिपादित की व यह माना कि विकिरण ऊर्जा का उत्सर्जन अथवा अवशोषण सतत् न होकर विविक्त बण्डलों के रूप में होता है जिसे फोटोन/क्वांटा भी कहते है।
फोटोन एक द्रव्य कण नहीं होता अपितु यह विकिरणों से सम्बद्ध कण होता है, इसे ऊर्जा का क्वांटम भी कहते है। फोटोन की ऊर्जा विकिरण की आवृति के समानुपति होती है तथा यह प्रकाश के वेग से गति करते है अर्थात -
E ∝ ν
E = hν {where ν = c/λ}
E = hc/λ
Where
ν = आवृति (Frequency)
c = प्रकाश का वेग (Velocity of light)
λ = तरंगदैर्घ्य (Wavelength)
h = प्लांक स्थिरांक (Planck Constant)
इसका मान 6.62 × 10-³⁴ जूल/ सेकंड होता है
फोटोन विद्युत उदासीन होते है व इनका विराम द्रव्यमान शून्य होता है। आइंस्टीन के द्रव्यमान ऊर्जा तुल्यता सम्बन्ध E= mc² के अनुसार एक फोटोन का गतिक द्रव्यमान निम्नानुसार ज्ञात कर सकते है।
E = mc²
m = E/c² = hν/c² { E = hν}
तथा फोटोन का संवेग
P = m×c
P = (hν/c²) × c
P = hν/c
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• प्रकाश विद्युत प्रभाव के लिए आइंस्टीन समीकरण - किसी धातु की सतह पर प्रकाश आपतित करने से इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन होता है तो इलेक्ट्रॉन को प्राप्त यह ऊर्जा दो रूपों में व्यक्त होती है। (1).धातु के पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन करवाने के लिए कार्यफलन (Φ) के रूप में ।
(2). उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन को अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रदान करने में।
E = Φ + 1/2 mv²max
hν = Φ + 1/2 mv²max .....(1) {where E= hν}
समीकरण 1. से स्पष्ट है कि प्रति सेकंड उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश फोटोन की आवृति पर निर्भर करती है यदि आवृति को कम कर दिया जावे तो उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रॉन गतिज ऊर्जा कम हो जाएगी, यदि आवृति को देहली आवृति के बराबर कर दे तो प्रति सेकंड उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा शून्य हो जाएगी अर्थात
ν = νo पर (देहली आवृति)
1/2 mv²max = 0
समीकरण (1) में मान रखने पर
hνo = Φ+0
hνo = Φ .......(2)
समीकरण (2) से मान समीकरण (1) में रखने पर
hν = hνo + 1/2 mv²max
hν - hνo = 1/2 mv²max .......(3)
We know that
ν = c/λ , νo = c/λo
अतः
1/2 mv²max = (hc/λ) - (hc/λo)
1/2 mv²max = hc {1/λ - 1/λo} ......(4)
समीकरण (3) व (4) आइंस्टीन समीकरणें है।
•Note :-
प्रकाश विद्युत प्रभाव को समझने के लिए आइंस्टीन ने माना की प्रकाश क्वांटा की भांति व्यवहार करता है। प्रकाशिय क्वांटा अर्थात फोटोन जब धातु की सतह पर आपतित होते है तो एक फोटोन एक इलेक्ट्रॉन से ही अनुक्रिया करता है। जिसमें फोटोन अपनी सम्पूर्ण इलेक्ट्रॉन ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को प्रदान करता है , इस ऊर्जा में से धातु के कार्यफलन के बराबर ऊर्जा का उपयोग कर इलेक्ट्रॉन को धातु की सतह में से मुक्त करवाया जाता है शेष ऊर्जा मुक्त हुए इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा में रूपांतरित हो जाती है।
• प्रकाश विद्युत प्रभाव के प्रायोगिक परिणामों के लिए आइंस्टीन का स्पष्टीकरण :-
1) समीकरण (3) से स्पष्ट है की प्रति सेकंड उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश फोटोन की आवृति पर निर्भर करती है।
1/2 mv²max = hν - hνo
यदि ν = νo
1/2 mv²max = hν - hν = 0
यदि ν < νo
1/2 mv²max = h(ν - νo)
(जो कि संभव नहीं)
आवृति को कम करने पर इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा घटती है। आवृति को देहली आवृति के बराबर करने पर इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा शून्य हो जाती है व यदि आवृति को देहली आवृति से कम करदे तो इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा ऋणात्मक हो जाती है जो कि संभव नहीं। स्पष्ट है कि देहली आवृति से कम आवृति का प्रकाश फोटोन धातु के पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नही कर सकता।
2) एक फोटोन की अनुक्रिया एक इलेक्ट्रॉन से ही होती है अर्थात उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन की संख्या आपतित फोटोनों की संख्या पर निर्भर करती है। स्पष्ट: प्रति सेकंड उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन की संख्या आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करती है।
3) क्वांटम सिद्धांत के अनुसार प्रकाश की ऊर्जा फोटोन के रूप में निहित है अतः जैसे ही पर्याप्त ऊर्जा का फोटोन धातु के पृष्ठ पर आपतित होता है तो इसके अवशोषण से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित हो जाता है अर्थात फोटो इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन में समय पश्चता नहीं होती।
4) 1/2 mv²max = h(ν - νo)
स्पष्ट: उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा आपतित फोटोन की आवृति पर निर्भर करती है, प्रकाश की तीव्रता पर नहीं।
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• प्रकाश की द्वैत प्रकृति :- प्रकाश की प्रकृति के बारे में आधुनिक सिद्धांत के अनुसार प्रकाश द्वैत प्रकृति का होता है, कुछ प्रक्रियाओं/परिघटनाओं में यह वि.चुम्बकीय तरंग की भांति व्यवहार करता है, जबकि कुछ परिघटनाओं में यह क्वाण्टा अर्थात फोटोनों की भांति व्यवहार करता है।
डी ब्रोगली की परिकल्पना
डी ब्रोगली के अनुसार "प्रत्येक गतिशील द्रव्यकण से सम्बद्ध एक तरंग होती है, जिसे द्रव्य तरंग या डी ब्रोगली तरंग कहते है। "
डी ब्रोग्ली तरंगों की तरंगदैध्र्य कण के संवेग के व्युतक्रमानुपाति होती है।
λ = h/mv {जहां p = mv}
λ = h/p
जहां h = प्लांक नियतांक
h = 6.62 × 10-³¹ J s
m = कण का द्रव्यमान
v = वेग , p = संवेग
• विभिन्न प्रकार के कणों से सम्बद्ध द्रव्य कणों की तरंगदैध्र्य :-
डी ब्रोगली की परिकल्पना से
λ = h/mv = h/p .......(1)
यदि कण की गतिज ऊर्जा E हो तो
E = mv²/2
2E = mv² दोनों पक्षों में m से गुणा करने पर
2mE = m²v²
2mE = (mv)²
(2mE)½ = (mv)
mv का मान समीकरण 1 में रखने पर
अतः λ = h/(2mE)½
1. इलेक्ट्रॉन (me = 9.1× 10-³¹):-
यदि इसे V वोल्ट विभवान्तर से त्वरित किया जाए तो इसकी गतिज ऊर्जा निम्न होगी।
E = eV (इलेक्ट्रॉन वोल्ट)
E = 1.6 × 10-¹⁹V जूल
h = 6.62×10-³⁴ J sec.
अतः
λe = h/ (2meE)½
λe = {6.62×10-³⁴} / {2×(9.1×10-³¹)×(1.6×10-¹⁹×V)}½
λe = (12.27 × 10-¹⁰) / (V) ½ मीटर
2. प्रोटोन (mp = 1.67×10-²⁷ kg) :-
यदि इसे V वोल्ट विभवान्तर से त्वरित किया जाए तो इसकी गतिज ऊर्जा निम्न होगी।
h = 6.62×10-³⁴ J sec.
E = आवेश × विभवान्तर
E = eV
E = 1.6×10-¹⁹×V जूल
अतः
λp = h/(2mpE)½
λp = {6.62×10-³⁴} /
{2×(1.67×10-²⁷)× (1.6×10-¹⁹)×V}½
λp = (0.286 ×10-¹⁰) / (V)½ मीटर
3.डयुटेरोन (1H²) :-
h = 6.62 × 10-³⁴ J sec
m = 2×(1.67 ×10-²⁷) kg
E = eV
E = 1.6 × 10-¹⁹ × V जूल
अतः
λ = h / (2mE)½
λ = {6.62×10-³⁴} /
{2×2×(1.67× 10-²⁷)×(1.6 ×10-¹⁹)×V}½
λ = (0.202 ×10-¹⁰) / (V) ½ मीटर
4. α कण :-
यदि इसे V वोल्ट विभवांतर से त्वरित किया जाए तो इसकी गतिज ऊर्जा निम्न होगी।
αm = 4× (1.67× 10-²⁷) Kg
E = 2 ×(1.6×10-¹⁹)× V जूल
h = 6.62 × 10-³⁴ J sec.
अतः
λα = h / (2αmE)½
λα = {6.62×10-³⁴} /
{2×4×(1.67×10-²⁷)×2×(1.6×10-¹⁹)×V}½
λα = (0.101 × 10-¹⁰) / (V)½ मीटर
5. न्यूट्रॉन (mn = 1.67×10-²⁷ kg) :-
न्यूट्रॉन एक उदासीन कण है, जिसे ताप द्वारा ऊर्जा दी जा सकती है। साधारण ताप न्यूट्रॉन की तापीय ऊर्जा
E = KT
जहां K = वोल्टेज मान नियतांक
जिसका मान 1.38×10-²³ J/K
अतः तापीय न्यूट्रॉन से सम्बद्ध डी-ब्रोगली तरंगदैध्र्य
λn = h/(2mnE)½ {जहां E = KT}
λn = h/(2mnKT)½
λn = [6.62 × 10-³⁴] /
[2×(1.67×10-²⁷)×(1.38×10-²³)×T]½
λn = (30.885 × 10-¹⁰) / (T)½ मीटर
6. गैस अणु :-
एक गैस अणु की औंसत गतिज ऊर्जा E = (3/2) Kt (जहां t = गैस का ताप)
अतः
λ = h/ {2m(3/2) kT}½
λ = h/ {3mkT}½ मीटर
• हाईजेन वर्ग के अनिश्चितता का सिद्धांत :-
किसी कण की स्थिति एवं संवेग का निर्धारण एक साथ नहीं किया जा सकता, यदि स्थिति का निर्धारण करे तो संवेग में अनिश्चितता तथा संवेग का निर्धारण करे तो स्थिति में अनिश्चितता आ जाती है।
यदि स्थिति की अनिश्चितता ∆x तथा संवेग की अनिश्चितता ∆p हो तो -
(∆x) (∆p) ≥ h/4π {h = प्लांक नियतांक}
यह नियम विहित सयुंग्मी राशियों के लिए भी सत्य है।
(∆E) (∆t) ≥ h/4π
(∆J) (∆θ) ≥ h/4π
जहां
∆E ऊर्जा में अनिश्चितता
∆t समय में अनिश्चितता
∆J कोणीय संवेग में अनिश्चितता
∆θ कोणीय विस्थापन में अनिश्चितता
• डेविसर जर्मर का प्रयोग
परमाणवीय कणों की तरंग प्रकृति ज्ञात करने के लिए इस प्रयोग का प्रतिपादन किया। डेविसर व जर्मर ने इस प्रयोग में यह प्रदर्शित किया कि इलेक्ट्रॉन पुंज का विवर्तन संभव होता है, स्पष्ट विवरण प्रभाव के लिए यह आवश्यक है की विवर्तक का आकार तरंग की तरंगदैध्र्य कोटि का होना आवश्यक है। गतिशील इलेक्ट्रॉन से सम्बद्ध द्रव्य तरंगों का तरंगदैध्र्य X किरणों की तरंगदैध्र्य की कोटि का होता है अतः इलेक्ट्रॉन का X किरणों की भांति विवर्तन होना चाहिए।
इलेक्ट्रॉन की तरंगदैध्र्य
λ = 12.27×10-¹⁰ / (V)½ मीटर
तथा V = 54 volt पर
λ = 12.27×10-¹⁰ / (54)½ मीटर
λ = 1.65 × 10-¹⁰ मीटर
X किरण विवर्तन के लिए ब्रैग के नियमानुसार पथांतर
dsinθ = nλ (जहां यहां n विवर्तन की कोटि है)
(d= 2.15×10-¹⁰ मीटर n=1 तथा θ=50°)
2.15×10-¹⁰ × sin 50°= λ
(sin 50° = 0.766)
2.15 ×10-¹⁰ × 0.766 = λ
λ = 1.67×10-¹⁰ मीटर
λ = 1.67 A°
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