•प्रकाश विद्युत प्रभाव (Photo Electric Effect)
जब किसी धात्विक प्लेट या प्रकाश संवेदी सतह पर विशिष्ट आवृति या इससे उच्च आवृति का प्रकाश डाला जाता है तो सतह से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते है, इस परिघटना को प्रकाश विद्युत प्रभाव (P.E.E.) कहते है।
•कार्यफलन :-धातु पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन बाहर निकालने के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा को कार्यफलन कहते है। इसे प्राय: "Φo" से प्रदर्शित करते है। इसका मात्रक eV या जूल होता है।
*कार्यफलन का मान धातु के गुणों इसके पृष्ठ की प्रकृति तथा पृष्ठ पर उपस्थित (अशुद्धियां) अपद्रव्य की मात्रा पर निर्भर करता है।
*कुछ धातुओं के लिए कार्यफलन :-
धातु कार्यफलन धातु कार्यफलन
Cs 2.14 Al 4.28
K 2.30 Hg 4.49
Na 2.75 Cu 4.65
Ca 3.20 Ni 5.15
Mo 4.17 Ag 4.70
Pb 4.25 Pt 5.65
- इलेक्ट्रॉन को धातु के पृष्ठ से बाहर निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा निम्न में से किसी एक द्वारा दी जा सकती है।
(1) तपायनिक उत्सर्जन :-
धातु की सतह का ताप बढ़ाने में इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन की प्रक्रिया तापायनिक उत्सर्जन कहलाती है।
(2) क्षेत्र उत्सर्जन :-
जब धातु पर प्रबल विद्युत क्षेत्र लगभग 10⁸ v/m अध्यारोपित करते है तो इलेक्ट्रॉन पर प्रबल विद्युत बल कार्य करता है तथा वह धातु सतह से बाहर उत्सर्जित होने लगते है इस प्रक्रिया को क्षेत्र उत्सर्जन कहते है।
(3) प्रकाश विद्युत उत्सर्जन :-
किसी धात्विक पृष्ठ पर प्रकाश को आपतित करने से धातु की सतह से e- का उत्सर्जन प्रकाश विद्युत उत्सर्जन कहलाता है।
(4) द्वितीयक उत्सर्जन :-
जब उच्च ऊर्जा के इलेक्ट्रॉन प्राथमिक धातु पृष्ठ से टकराते है तो अपनी ऊर्जा को धातु के पृष्ठ के e- को दे देते है, जिससे धातु सतह से मुक्त इलेक्ट्रॉन पृष्ठ से उत्सर्जित होने लगते है। दूसरे शब्दों में
धातु की सतह पर प्रकाश आपतित करने से सतह के इलेक्ट्रॉन के साथ-साथ भीतर के e- का भी उत्सर्जन हो जाता है, यह परिघटना द्वितीयक उत्सर्जन कहलाती है।
•फोटो इलेक्ट्रॉन :-
प्रकाश के कारण पृष्ठ से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन को फोटो इलेक्ट्रॉन कहते है तथा उत्पन्न प्रकाश विद्युत धारा कहते है।
•प्रकाश सुग्राही पदार्थ :-
वह पृष्ठ जो प्रकाश के आपतन होने पर इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन करता है प्रकाश सुग्राही पदार्थ कहलाता है।
* कुछ पदार्थ सुग्राही धातुएं Li, Na, K, Cs (क्षार धातुएं) दृश्य प्रकाश पर ही प्रकाश विद्युत प्रभाव प्रदर्शित करती है।
* कुछ अन्य धातुएं जैसे Zn, Cd, Mg इत्यादि पराबैंगनी प्रकाश आपतित होने पर प्रकाश विद्युत प्रभाव(P.E.E.) दर्शाते है।
•प्रकाश विद्युत प्रभाव के प्रायोगिक परिणाम व व्याख्या :-
• लेनार्ड व हाॅलवाॅक्स का प्रयोग :-
प्रकाश विद्युत प्रभाव (P.E.E.) का प्रायोगिक अध्ययन करने के लिए निम्न चित्रानुसार परिपथ बनाते है।
इसमें एक क्वार्ट्ज कांच की निर्वात नलिका होती है, जिसमे प्रकाश सुग्राही एनोड (P) तथा कैथोड (C) लगे होते है। कैथोड व एनोड के मध्य इच्छित विभवान्तर उत्पन्न करने के लिए विभव विभाजक लगा होता है साथ ही विभवान्तर मापने के लिए वोल्टमीटर तथा अल्प धारा को मापने के लिए माइक्रोएमीटर परिपथ में चित्रानुसार लगाए जाते है। एक द्विक परिवर्तक भी परिपथ में जुड़ा होता है जिससे एनोड व कैथोड को इच्छानुसार धन या ऋण तथा ऋण या धन विभव पर रखा जा सकता है।
• क्रियाविधि :- जब विशिष्ट आवृति के प्रकाश को कैथोड पर आपतित करते है तो कैथोड से प्रकाश इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन होता है, ये उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन एनोड की ओर त्वरित होते है एवं प्रकाश विद्युत धारा उत्पन्न करते है जिसे माइक्रोएमीटर से मापा जाता है।
- प्रकाश विद्युत धारा का मान निम्न कारकों पर निर्भर करता है:-
(1) आरोपित विभवान्तर
(2) आपतित प्रकाश की तीव्रता
(3) आपतित प्रकाश की आवृति
- प्रकाश विद्युत धारा के प्रायोगिक अध्ययन से निम्न परिणाम प्राप्त होते है।
(1) प्रकाश विद्युत धारा पर विभव का प्रभाव :-
प्रकाश विद्युत धारा की कैथोड व एनोड के मध्य विभवान्तर पर निर्भरता का अध्ययन करने के लिए हम प्रकाश की तीव्रता व आवृति को निश्चित मान पर रखते है। विभवान्तर तथा प्रकाश विद्युत धारा में खींचा गया ग्राफ निम्नानुसार प्राप्त होता है।
आरोपित विभव बढ़ाने पर प्रारंभ में धारा का मान बढ़ता है फिर धारा नियत हो जाती है, जिसे संतृप्त धारा कहते है।
* द्विक परिवर्तक की सहायता से एनोड को ऋण विभव पर तथा कैथोड को धन विभव पर रखने पर भी अल्प मान की धारा प्रवाहित होती है, क्योंकि कुछ इलेक्ट्रॉन एनोड तक पहुंच जाते है जिनकी गतिज ऊर्जा बहुत अधिक होती है।
* यदि एनोड के ऋणात्मक विभव को ओर अधिक बढ़ाया जाए तो प्रकाश विद्युत धारा के मान में कमी आती है और एक निश्चित ऋणात्मक विभव पर प्रकाश विद्युत धारा का मान शुन्य हो जाता है। इसे "निरोधी विभव" या "अंतक विभव" कहते है।
* निरोधी विभव :- P.E.E के प्रयोग में कैथोड के सापेक्ष एनोड को दिया गया वह ऋणात्मक विभव जिस पर प्रकाश विद्युत धारा का मान शुन्य हो जाता है निरोधी विभव कहलाता है।
"निरोधी विभव का मान प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करता।"
निरोधी विभव वास्तव में इलेक्ट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा का मापक है। इस ऋण विभव Vo के कारण इलेक्ट्रॉन को कैथोड से एनोड तक पहुंचाने में किया गया कार्य eVo अधिकतम गतिज ऊर्जा के बराबर होता है।
eVo = Kmax = (1/2)mv²max
(2) PEE पर प्रकाश की तीव्रता का प्रभाव :-
- जब प्रकाश की तीव्रता बढ़ती है अर्थात आपतित फोटोनों की संख्या बढ़ती है तो उत्सर्जित होने वाले इलेक्ट्रोनों की संख्या बढ़ती है जिससे प्रकाश विद्युत धारा का मान बढ़ता है।
(3) निरोधी विभव पर आपतित प्रकाश की तीव्रता के प्रभाव :-
• निरोधी विभव पर आवृति का प्रभाव :-
• आवृति का मान बढ़ाने से निरोधी विभव का मान बढ़ता है जिससे आवृति निरोधी विभव के मध्य वक्र सरल रेखीय प्राप्त होता है।
• एक निश्चित न्यूनतम आवृति से पहले धारा नहीं बहती जिसे देहली आवृति कहा जाता है।
•अलग अलग धातुओं के लिए भिन्न भिन्न वक्र प्राप्त होंगे तथा यह प्रकाश सुग्राही पदार्थ के प्रकृति पर निर्भर करता है।
•देहली आवृति :-
धात्विक पृष्ठ पर आपतन प्रकाश की जिस न्यूनतम आवृति पर इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन प्रारम्भ हो जाता है उसे देहली आवृति (νo) कहते है तथा इससे संबद्ध अधिकतम तरंगदैर्घ्य को देहली तरंगदैर्घ्य कहते है।
देहली आवृति (νo) तथा देहली तरंगदैर्घ्य (λo) के मान भिन्न-भिन्न पदार्थों के लिए भिन्न-भिन्न होते है परंतु एक धातु या पदार्थ के लिए नियत होते है।
•प्रकाश विद्युत प्रभाव के नियम (प्रयोग का सार):-
Rule I - जब पर्याप्त उच्च आवृति का प्रकाश किसी धात्विक सतह पर आपतित होता है तो धातु इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करती है। यह उत्सर्जन बिना किसी काल पश्चता के होता है।
Rule II - किसी दी गई धातु के लिए एक निश्चित न्यूनतम आवृति (देहली आवृति) νo होती है इससे कम आवृति का प्रकाश आपतित होने पर प्रकाश विद्युत प्रभाव प्रेक्षित नही होता , चाहे आपतित प्रकाश की तीव्रता कितनी ही अधिक क्यों न हो।
Rule III - प्रकाश इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा शून्य से एक अधिकतम मान (Kmax) के मध्य कुछ भी हो सकती है।
Rule IV - निरोधी विभव प्रकाश तीव्रता पर निर्भर नहीं करता परंतु निरोधी विभव प्रकाश की आवृति के समानुपाति होता है।
Rule V - प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने पर संतृप्त प्रकाश विद्युत धारा बहती है।
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